समाजिक खेल मे आशिक बेमेल।
जाति धर्म के चक्कर में
आशिक पीस जाते हैं इस चक्कर में।
जाति -धर्म का भेद ना होता
आशिकों का दिल इतना
मजबूर ना होता।
मुश्किल वक्त में सब हो साथी
जीवन साथी हो अपनी जाति।
वाह रे! समाज तेरा कैसा खेल
जहां होने नहीं देता
दो आशिकों का मेल।
-Sitaram Mahato
आशिक पीस जाते हैं इस चक्कर में।
जाति -धर्म का भेद ना होता
आशिकों का दिल इतना
मजबूर ना होता।
मुश्किल वक्त में सब हो साथी
जीवन साथी हो अपनी जाति।
वाह रे! समाज तेरा कैसा खेल
जहां होने नहीं देता
दो आशिकों का मेल।
-Sitaram Mahato
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