मैं ना समझ

मैं ना समझ ही सही पर खुदगर्ज नहीं हू।
बस समझ न सका दुनिया -दारी
जहां फैला हुआ है स्वार्थ की महामारी।
यहां हर बात में व्यापार दिखता है
दिखता नहीं है तो लोगों की वेवशी।।

छनिक सुख के चक्कर में लोग
क्या - क्या पापड़ बेल जाते हैं
जिन्दगी का कोई ठीक नहीं है यह जानते हुए भी
चालबाजी, मक्कारी,  से बाज़ नहीं आते हैं
व्यर्थ में ही अपना समय बीता देते हैं
सुख भोगने के काल का इंतजार कर
परलोक सिधार जाते हैं।।

ये मतलबी, चालबाज लोगों से भरा है जहां
मुझे कहां रास आते हैं।
मुझे अपनी दुनिया में हर हाल में खुश रहना आता है
इस मतलबी दूनिया में अपना सम्मान बनाए रखना जानते हैं
घमंडी लोगों से दूरी बनाए रखने में ही समझदारी समझता हूं।

हम ही हम हैं पर विश्वास नहीं है पर
हम किसी से कम भी नहीं है।
साजिश का आहट मैं भाप न पाया
मुझे अपनो पर विश्वास था
अपनों से खबरदार हों ना पाया।

माना कि ना समझ हूं मैं
पर धोखेबाजी, मजबूरी का फायदा उठानेवाला
किरदार नहीं हूं मैं।
लोगों के ऊपर विश्वास करना ही मुझे डुबा देता हैं
इससे ज्यादा मै कसूरवार नहीं हूं।
मेरी उम्र तो बढ गई पर अक्ल का सूत अभी कच्चा है
हमें ना समझ ही रहने दो हम ना समझ ही अच्छा है।

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