ना मैं किसी के नजदीक हूं,
ना किसी के करीब हूं।
जो मुझे जितना समझते,
उतना ही उसके करीब हू।
जब दो लोगों के विचार मिलते हैं
वहां लोग अपने आप करीब आ जाते हैं
पर विपरीत ख़्यालात के लोगो के बीच,
समन्वय स्थापित करना ये आप के विवेक पर निर्भर करता है ‌
ख्यालों का मिलना भी एक सबब ही हैं।
यहां विचारों का आदान-प्रदान नहीं होता हैं।
किसी के हर बात में हामी भरना समझदारी नहीं है,
गलत को गलत बोलना कोई वेवफाई नहीं है।
बड़ों का सम्मान जरूरी हैं,
पर अपने विचार व्यक्त करना भी जरूरी हैं।
हमारे विचार से किसी को चोट ना पहुंचे
इसका ख्याल रखना भी जरूरी हैं।
समय के साथ बदलना भी जरूरी है
पर अपना सही पारम्परिक व्यवस्था को,
जीवित रखना भी जरूरी है।
मानव हो तो मानवता के प्रति उदार बनो,
जहा सम्भव हो लोगों का सहयोग करो।
कभी -कभी आपका एक सुझाव ही
सामने वाले को बहुत समस्या का हल खोजने में मदद करता हैं।
वह अपना समझे इस वाक्य से सदैव घृणा करे।
इन्सान हों तो थोड़ा सा इंसानियत दिखा।


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